ब्लैक बैंगल्स चैप्टर 42
ब्लैक बैंगल्स चैप्टर 42
दीपक की हल्दी
अब तक आपने पढ़ा अरमान और आर्या वापस चले जाते हैं दीपक की हल्दी की रसम की तैयारियां हो गई थी यश से बात कर रही थी तभी उसका फोन बजता है...
********************
"अब आगे"
ज्योति अपना फोन लेकर अपने कमरे में चली जाती है ...और यश नीचे आ जाता है....ज्योति कमरे में आकर फोन उठाती है और केहती है.....क्या खबर है तभी दूसरी तरफ से आवाज आती है "मैंने आपको मेल कर दिया है ....आप पढ़ लीजिएगा ...उसने जैसा कहा है वैसा ही है....वह दीपक सर के साथ उन्हीं की कंपनी में काम करता है ...और कोई खास फैमिली बैकग्राउंड नहीं है उसका...उसकी फैमिली एक मिडिल क्लास फैमिली है जिसमें यश और उसके मां-बाप है बस....करीब 3 साल से उस कंपनी में काम कर रहा है...बस इतनी ही इंफॉर्मेशन है उसकी"
ज्योति कहती है "तुम श्योर हो वह आदमी कहता है....हाँ हंड्रेड परसेंट" ज्योति कहती है "ठीक है....ध्यान रखना कुछ और पता चले तो मुझे इन्फॉर्म करना" वह आदमी कहता है ठीक है इतना कहकर कॉल कट कर देता है...
ज्योति फोन जेब मे रखती है..और नीचे सबके साथ चली जाती है थोड़ी देर में दीपक की हल्दी की रस्म शुरू हो जाती है....सब एक-एक करके दीपक को हल्दी लगा रहे थे सबसे पहले उमा जी उसके बाद बाकी फैमिली वाले ज्योति....भी अपने भाई को हल्दी लगाती है...
तभी एक लड़का जिसकी उम्र करीब 20-21 होगी....ज्योति को बीच मे ले आता है और गाना शुरू करता है...
थोड़ी देर मस्ती करने के बाद सब आराम करने चले जाते हैं...
थोड़ी देर में हल्दी की रसम पूरी हो जाती है तभी उमा जी कहती हैं हल्दी की रसम हो गई....रात को मेहंदी भी लग जाएगी कल सब जने टाइम से उठ जाना शादी की तैयारी करनी है इतना कहकर उमा जी
वहां से चली जाती है....अंकित दीपक को लेकर उसके कमरे में चला जाता है....ज्योति भी सारा काम खत्म करके अपने कमरे में जा रही होती है....तभी कोई उसका हाथ पकड़ कर उसे दूसरे कमरे में खींच लेता है और दीवार से लगा देता है
ज्योति उससे बचने के लिए उसके हाथ को मरोड़ कर दोबारा उसे दीवार से लगा देती है तभी उसकी नजर सामने खड़े शख्स पर जाती है ....वो शक्स और कोई नहीं यश था....ज्योति यश को घूरते हुए कहती है ....."यह क्या बदतमीजी है"
यश पलट कर ज्योति को दीवार से लगाते हुए कहता है "मैंने कोई बदतमीजी तो नहीं की.....लेकिन तुम्हारी फुर्ती को मानना पड़ेगा"
ज्योति यश को घूरते हुए कहती है "अगर तुमने मुझे छोड़ा नहीं तो तुम अपनी हड्डियों से हाथ धो बैठोगे" यश ज्योति को कमर से पकड़ कर अपनी तरफ करते हुए कहता है "आर्मी वाली होना ताकत तो दिखाओगी लेकिन मैं भी कोई कमजोर नहीं हूं....चाहो तो आजमा कर देख लो"
ज्योति यश को देखती है और उसके चेहरे पर एक तिरछी मुस्कान आ जाती है... यश ज्योति को घूरते हुए कहता है "तुम्हारी नियत ठीक नहीं लगती मुझे"
ज्योति एटीट्यूड के साथ कहती है "आर्मी वालों की नियत कभी ठीक होती भी नहीं है" इतना कहकर ज्योति यश के कान काट लेती है .......दर्द के कारण यश उसे छोड़ देता है....और अपने कान पकड़ कर खड़े हो जाता है.....और दर्द में कहता है "पागल हो गई हो क्या ऐसे कौन करता है"
ज्योति पूरे एटीट्यूड के साथ कहती है "मुझे चैलेंज करने की गलती कभी मत करना"....और वहां से जाने लगती है यश दोबारा उसका हाथ पकड़ कर उसे दीवार से लगा देता और उसके दोनों हाथ पकड़ कर ऊपर अपने एक हाथ से ब्लॉक कर देता है और उसकी आंखों में देखते हुए कहता है "मिस कैप्टन ज्योति पांडे....एक बात मेरी हमेशा याद रखना.....जब तक मैं खुद ना हारना चाहूं तुम मुझे कभी नहीं हरा सकती"
ज्योति कुछ देर यश की आँखो में देखती है फिर कहती है "और जब तक मै ना चाहूँ...... तुम मुझसे जीत नही सकते"
यश कुछ देर ज्योति को देखता है... फिर उससे दूर खड़ा हो जाता है... "तुम जा सकती हो"
ज्योति जाने लगती है तभी यश कहता है "एक मिनट सुनना"
ज्योति बिना पीछे मुड़े खड़ी हो जाती है "यश उसके करीब आता है और पीछे से उसे बाहों मे भर लेता है...
ज्योति उससे छुटने की कोशिश करते हुए केहती है " यश लिव मी... ये क्या बदतमीजी है "
यश कुछ नही कहता है बस उसके लहेंगे के दुप्पटे को उसके पेट के पास से हटाता है और हल्के से टच करता है... फिर उससे दूर हो जाता है.... "अब जा सकती हो"
ज्योति भागते हुए वहाँ से निकल जाती है... यश अपने बालों मे हाथ फेरते हुए कहता है "आ-गाज़े शिकस्त मुबारक हो देवांश तुम्हे"
ज्योति अपने कमरे मे आकर दरवाजा बंद करके उससे लगकर खड़ी हो जाती है.... और अपनी बढ़ी हुई धड़कनो को संभालने की कोशिश करने लगती है.... फिर आइने मे खुद को देखने लगती है तभी उसकी नज़र अपने पेट के पास दुपट्टे पर जाती है जहाँ हल्दी लगी थी.....
ज्योति जब दुपट्टा हटा कर देखती है.... तो उसके पेट पर हल्दी लगी थी... ज्योति की चेहरे पर मुस्कान आती है... तभी ज्योति को कुछ याद आता है... वो खुद से ही केहती है "जिस रास्ते की मंज़िल ही ना हो... उसकी शुरुआत करना ही धोखा है... और जिस रास्ते के ख्वाब मेरे मन मे पनप रहा है.... उसे यही रोकना होगा"
ज्योति थोड़ी देर मे नहा कर छत पर लगे झूले पर बैठ जाती है... तभी ज्योति का फोन बजता है.... फोन उठाते हि सामने से कोई कहता है "मैडम देवांश करांची चला गया है... आज ही"
ज्योति हैरानी से खड़े होते हुए केहती है "ये कैसे हो सकता है... कबीर की इतनी बड़ी पार्टी मे देवांश ना हो कैसे पॉसिबल है"
वो आदमी फिर कहता है "मैने उसे आज कराची जाते हुए देखा है"
ज्योति कुछ देर खामोश खड़ी रहती है और खुद से ही केहती है "नही ये कैसे हो सकता है.... इतनी आसानी से वो कैसे जा सकता है"
थोड़ी देर बाद ज्योति अपने कमरे मे आती है और शीशे के सामने खड़ी हो जाती है और खुद को देखते हुए केहती है "नही देवांश नही तुम इतनी आसानी से कैसे जा सकते हो... अभी तो कहानी शुरू हुई है"
"तुमने नाम सुना है मेरा
मेरी पेहचान नही देखी है
तुमने उन सुलगते दिन के
उजाले देखे हैं
वो खामोश रातों मे जलते
दिल दिल के अंगारे नही देखे है
तुमने चेहरे की हसी देखी है
उन आँखो मे छुपा दर्द नही देखा
तुमने मेरे शब्द देखे हैं
तुमने मेरा खामोश होना नही देखा
तुमने मेरी खुशनुमा सुबह देखी है
रातों मे बहता वो खामोश आँसू नही देखा
हाँ तुमने सिर्फ मुझे देखा है
तुमने मुझे नही देखा"
क्या ये एहसास मोहब्बत का है जिससे ज्योति इंकार करने की कोशिश कर रही है? क्या सच मे देवांश कराची चला गया या है कोई नई साज़िश?
जानने के लिए पढ़ते रहिये मेरी कहानी ब्लैक बेंगल्स
............ बाय बाय.........
madhura
11-Aug-2023 07:20 AM
Nice part
Reply
Varsha_Upadhyay
01-Feb-2023 07:02 PM
Nice 👍🏼
Reply
Rajeev kumar jha
31-Jan-2023 12:59 PM
Nice
Reply